राहे हक़ पर चलते ही दुश्मन ज़माना हो गया
अपनी क़िस्मत थी जो बातिल से किनारा हो गया
हम से तुम अहवाल न पूछो सियासत दानों का
माले दुनिया के लिए एक एक दिवाना हो गया
अबरे रहमत तो बरसता है मगर तन्हाई मे
यह ज़ुबां कैसे कहे मौसम सुहाना हो गया
एक सवाल उन से जो पूछा तो गुस्सा हो गए
बात इतनी सी थी बस जिस का फसाना हो गया
बद नसीबी यह नही ज़ीशान तो क्या है मेरी
एक दिल था मेरा वह भी शायराना हो गया
✍ ज़ीशान आज़मी
راہِ حق پر چلتے ہی دشمن زمانہ ہو گیا
اپنی قسمت تھی جو باطل سے کنارہ ہو گیا
ہم سے تم احوال نہ پوچھو سیاست دانوں کا
مالِ دنیا کے لئے اک اک دِوانہ ہو گیا
ابرِ رحمت تو برستا ہے مگر تنہائی میں
یہ زباں کیسے کہے موسم سہانہ ہو گیا
اک سوال ان سے جو پوچھا تو وہ غصہ ہو گئے
بات اتنی سی تھی بس جس کا فسانہ ہو گیا
بد نصیبی یہ نہیں ذیشان تو کیا ہے مری
ایک دل تھا میرا وہ بھی شاعرانہ ہو گیا
✍ ذیشان آعظمی